आत्मा एक सूक्ष्म शरीर होती है जिसे बाहरी आँखों से नहीं बल्कि अंतर्मन की आँखों से देखा जा सकता इसे केवल महसूस किया जा सकता है इस लेख के द्वारा हम आपको आत्मा के बारे में ज्ञान प्रदान करवाएंगे।
अगर आप कल्पना से प्यार करते हैं,तो आप समझते हैं कि यह एक स्वतंत्र आत्मा है।कल्पना केवल यहाँ एक विचार मात्र है जो आपके साथ कहीं भी जा सकती है जिससे आप कुछ भी करने और निर्णय लेने मे सहज महसूस करते हैं।
आत्मा का परमात्मा से सीधा संबंध होता है। आत्मा को आम नेत्रों से देखा नहीं जा सकता। इसको देखने के लिए बहुत साधना और ध्यान लगाना पड़ता है जोकि आम आदमी के लिए संभव नहीं है आत्मा ही हमारा परमात्मा से सीधा संपर्क कराती है।इसके लिए हमें अपने अंदर की अतंर आत्मा को जगाना पड़ता है।
हमारे शरीर के अंदर सात चक्र होते हैं।आइए जानते हैं:-
1)मूलाधारचक्र
4)अनाहतचक्र
5)विशुद्धचक्र
6)आज्ञाचक्र
7)सहस्त्रारचक्र
मूलाधार में मूल का अर्थ यहाँ जड़ होता है,आधार का अर्थ नींव होता है यह चक्र सात चक्रों में से पहला चक्र है इसके मन्त्र का उच्चारण लम(लं)से किया जाता है मूलाधार चक्र जागृत करने से उत्साह विकास और स्फूर्ति उत्पन होती है यह सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है
यह चार पंखड़ियों वाले कमल के फूल जैसा होता है इस चक्र का रंग लाल होता है।
इस चक्र के हमारे शरीर में चार कार्य होते हैं जिनमेमानस,बुद्धि,चित और अहंकार का अनुशरण करना होता है।
स्वाधिष्ठान में स्व का अर्थ है आत्मा और अधिष्ठान का अर्थ है स्थान इसका मंत्र वम(वं)है यह पेडू के पिछले भाग की पसली में जागृत होता है यह चक्र व्यक्तित्व में विकास और जाग्रति का कार्य करता है यह छह पंखड़ियों वाले कमल के फूल जैसा होता है और इस चक्र का रंग सतरंगी होता है इसका कार्य नकारात्मक अवगुणों पर विजय प्राप्त करना होता है,ये अवगुण क्रोध,घृणा,आलश्य,बदला,लोभ और क्रूरता होते हैं।
मणि का अर्थ है गहना और पुर का अर्थ है जगह यह चक्र नाभि के पीछे जागृत होता है इसका मंत्र रम(रं)है जब यह जागृत होता है तो इससे नकारात्मक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
मणिपुर चक्र जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है मणि मतलब गहना।इसमें बहुमूल्य मणियाँ पाई जाती हैं।जैसे:स्पष्टता,आत्मविश्वास,आत्मभरोसा,आनंद,निर्णय लेने की योग्यता शामिल है इसका रंग पीला है यह दस पंखड़ियों वाले कमल के फूल जैसा होता है
अनाहतचक्र को हृदयचक्र भी कहा जाता है क्योकि यह हृदय में स्तिथ होता है,यह आत्मा की पीठ है यह मनुष्य के शरीर का चौथा चक्र होता है इसका मंत्र यम है और इसमें ॐ ध्वनि का उच्चारण होता है इसका रंग हरे रंग की तरह होता है यह बारह पंखड़ियों वाले कमल के फूल जैसा होता है अनाहतचक्र जितना शुद्ध होगा उतनी जल्दी आपकी इच्छा पूरी होगी यह चक्र मानव को आध्यात्मिक चेतना की और ले जाता है
विशुद्धचक्र में विष का अर्थ है जहर या अशुद्धता शुद्ध का अर्थ है अवशिष्ट निकालना इसका मंत्र हम(हं)है।इस चक्र को कंठ चक्र के नाम से भी जाना जाता है क्योंकी यह गले और फेफड़ों के बीच जागृत होता है।
यह चक्र पाँचवा चक्र है।यह स्थान ऊर्जा से भरा रहना चाहिए।यह सोलह पंखड़ियों वाले कमल के फूल जैसा होता है।इसका कार्य गला,गर्दन,भोजन नालिका रीढ़ की हड्डी के कार्य को नियंत्रित करना है।इसका रंग नीला होता है।यह शारीरिक और मानसिक स्तर को शुद्ध करता हैं।
आज्ञाचक्र को तीसरा नेत्र या भृकुटि चक्र कहा जाता है इसका मंत्र ॐ है यह ज्ञान के द्वार खोलकर वास्तविकता का अनुभव करवाता है यह मानव चेतना और परमात्मा के बीच की रेखा है इसमें आत्मचिंतन और आध्यात्मिकता प्राप्त होती है यह मस्तक के मध्य और भोहों के बीच में होता है यह तीन नाड़ियों चंद्र,सूर्य,केंद्र नाड़ी के मिलने का स्थान है जिससे मानव समाधि और सर्वोच्च चेतना पर पहुंच जाता है यह दो पंखड़ियों वाले कमल के फूल जैसा होता है।
सहस्त्रार का अर्थ है हज़ार अनंत यह चक्र सिर के ऊपर विद्यमान होता है इसे हज़ार पंखड़ियों वाला कमल भी कहा जाता है इसका प्रकाश सूर्य की भांति होता है अन्य सभी चक्रो का प्रकाश इसके आगे फीके पड़ जाते हैं सहस्त्रार चक्र में मेधा शक्ति होती है जोकि हमारी स्मरण शक्ति एकाग्रता पर अपना प्रभाव डालती है इस चक्र का रंग बैंगनी होता है इसमें भी ॐ का उच्चारण किया जाता है और अपने मन को पूरी तरह से स्थिर कर लिया जाता है इस अवस्था में आकर आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है।
पवित्र आत्मा कैसे प्राप्त करें
उपरोक्त सभी सातों चक्रों को जागृत करना पड़ता है जब ये सातों चक्र जागृत हो जाते है तब आपको अपने अंदर एक प्रकाश नजर आता है जोकि सूर्य के प्रकाश से भी ज्यादा तेज होता है।उस प्रकाश को हर कोई नहीं देख सकता।इसे केवल वही व्यक्ति देख सकता है जिसने अपना शरीर पूरा साध रखा हो।
कुछ लोग उस प्रकाश को देखते ही घबरा जाते है,चिल्लाने लगते है और बेहोश हो जाते है।जो लोग इस प्रकाश को सहन कर लेते है तब उनकी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है।तब ऐसे व्यक्ति जीते जी मरना सीख जाते है।जब उस व्यक्ति की मृत्यु आती है तो वह घबराता नहीं है।
डर उस इंसान को ज्यादा लगता है जोकि परमात्मा से दूर है।हमारी आत्मा परमपिता परमात्मा से बिछड़कर इस मृत्युलोक में आई हुई है मोक्ष की प्राप्ति के लिए। हमारी आत्मा दिन रात उस परमात्मा से मिलने के लिए तड़पती रहती है।
जिस प्रकार एक बच्चा अपने माता-पिता से मिलने के लिए तड़पता है।जब एक बच्चे का जन्म होता है तब वह खूब रोता है जबकि वह एक आत्मा रो रही होती है क्योंकि वह अपने माता-पिता से बिछड़ जाती है और जब उसकी मृत्यु आती है तब उसके जो अपने है वो विलाप कर रहे होते हैं परंतु आत्मा खुश हो रही होती है कि वह अपने घर जा रही है अपने परमपिता परमात्मा से मिलने।
आशा करते हैं कि उपरोक्त लेख को पढ़ कर आपको आत्मा से परमात्मा के मिलन के बारे मे थोड़ा ज्ञान प्राप्त हुआ होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt Please let me know